धोखे का दिन है 19 जनवरी. उन तमाम मजबूरियों और दर्द का दिन, जब आपके अपने लोग आपको अपने घरों से भाग जाने को मजबूर करते हैं. सरकार आपका साथ नहीं देती. फिर आपके दर्द को भुला भी दिया जाता है. ये सब हमारे देश में ही हुआ है. हमारे भारत में कई जगहों पर अत्याचार हुए हैं लोगों पर. उन पर बात भी होती है. लेकिन कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को सेक्युलर रहने और देश में समरसता लाने के नाम पर बहा दिया गया है. ये सच है कि माइनॉरिटीज़ के साथ बहुत बार, बहुत खराब व्यवहार हुआ है, पर ये भी सच है कि कश्मीरी पंडितों के साथ भी उतना ही खराब व्यवहार हुआ है. ऐसा लगता है कि हमारा सिस्टम खुद से ही डरता है. हमें यकीन है कि हम लोग अपने लोगों को बचा नहीं पाएंगे. इसलिए हम ये मानने से भी डरते हैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ बुरा हुआ है. क्योंकि मन में डर होता है कि फिर बाकी जगहों पर लोग मुसलमानों को तंग करने लगेंगे. पर क्या ये तरीका सही है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम सबको न्याय दिला पाएं? न्याय के क्रम में ये कहां से आ जाएगा कि जो ‘बहुसंख्यक’ है वो पीड़ित नहीं हो सकता और ‘अल्पसंख्यक’ गलत नहीं हो सक
Old and Current situation of Indian politics